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हाँ दोस्तों, तो मैं बता रही थी कि रौशनी तो दो बर तरप्थ हो गए, वो भी निडालो कर मेरे बाजों में सो गए, और मैं एक बर फिर से प्यासी रहे गए।
सोचा था आज धीरज और तो दिपा किलाड़े से अपने चूत रानी की पूजा करूँगे, अब मेरी वास्णा मुझे पर हावी होने रही, मुझे किसी भी तरप, किसी से भी जदना था।
अपनी को शांत करने की तरकीब सुची, कपड़े ठीक किये, बाग से निरोध के चार पैक निकाले और जीनस में रखे।
रात का एक बज़ रहा था, धीरे से उठी, मेच पर पड़ी कमरे की चावि उठाए और बाहर चली गए।
बाग से अब शान थी, पाटी खतम हो गई थी, अपनी कमरों में जाम चलका रहे थे या कामुकता को भोग रहे थे।